क्या आम आदमी की जान की कोई कीमत नहीं है, खूंखार जानवरों से जनता परेशान सरकार और न्यायालय के आदेशों के बावजूद डीएफओ साहिबा मना रही हैं वन्य प्राणी सप्ताह

देश में सरकार किसी की भी हो केंद्र हो या प्रदेश सबके द्वारा अपने अपने हिसाब से मतदाताओं पर अपनी पकड़ बनाए रखने के लिए जनहित की योजनाए बनाने के साथ-साथ उन्हें भयमुक्त वातावरण और अन्य सुविधाएं देने के साथ ही प्रयास किए जाते हैं कि वो प्रसन्न तथा खुशहाल रहे इसके लिए हरसंभव प्रयास किए जाते हैं। वर्तमान में केंद्र व प्रदेश की सरकारें तो जितने नेताओं के बयान आ रहे हैं तथा योजनाएं घोषित हो रही है। इस मामले में अग्रणीय रहकर काम कर रही हैं। मगर सवाल उठता है कि इस सबके बावजूद जनता परेशान और अपने आपको असुरक्षित क्यों महसूस कर रही है। विपक्ष का आरोप अपराध बढ़ रहे हैं, बेटिया सुरक्षित नहीं हैं। तो माननीय मुख्यमंत्री जी द्वारा हर व्यक्ति को सुरक्षा उपलब्ध कराने तथा प्रदेश के डीजीपी ओपी सिंह का कथन कि अपराध कम हुए हैं और भय का वातावरण छटा है। तो समझ में आता है क्योंकि यह समस्या आज की नहीं आदिकाल से है। इस क्षेत्र में कितना काम हो रहा है और उसका लाभ जनता को कितना मिल रहा है यह एक अलग बात है। 
फिलहाल हम आदमी के लिए उत्पन्न हो रहे अन्यों प्रकार के खतरों तथा उन्हें रोकने व हर व्यक्ति को बचाने के लिए जिम्मेदार सरकारी अफसरों की लापरवाही और मौज मस्ती के साधन विभिन्न माध्यमों से जुटाने के लिए सरकारी पैसे से किसी न किसी तरह कहे अनकहे रूप से किए जा रहे प्रयासों की ओर दिलाना चाहते हैं।
बताते चलें कि आवारा पशुओं कुत्तों बंदरों आदि से निपटने की नीति बनाने के निर्देश माननीय दिल्ली हाईकोर्ट के द्वारा दिए गए। इनसे बचाव करने के आदेश पूर्व में सरकार द्वारा भी कई बार दिए जा चुके हैं। जनता भी समय समय पर अधिकारियों से मिलकर इस संदर्भ में सकारात्मक कदम उठाने की मांग कर रही है। लेकिन हमारे वन विभाग के अधिकारी पता नहीं कहां खोए हुए हैं। खुद तो इस मामले में कुछ प्रभावशाली कार्य कर नहीं रहे है। अगर अन्य विभाग कुछ करता है तो उसे कानूनी पचड़े में इस तरह फंसा देते हैं कि वह चुपचाप बैठ जाता है। फिलहाल हम बात यूपी के ऐतिहासिक जिला मेरठ की करते हैं। यहां आंकड़ों के अनुसार 184 लोगों को खूंखार कुत्ते और बंदर अपना शिकार बना रहे हैं। कई लोग मौत की नींद भी सो चुके हैं। लेकिन यह कितनी सोचनीय बात है कि जिस समय आम नागरिक बंदर कुत्ते और अन्य जानवरों के खतरे के चलते सहमा सहमा घूम रहा है वहीं वन विभाग के जिम्मेदार अधिकारी वन्य प्राणी सप्ताह मनाने के साथ ही हस्तिनापुर सेंचुरी घूमने और घुमाने की योजना बना रहे हैं। डीफओ अदिति शर्मा के नेतृत्व में इसकी कमान संभाली जा रही है। ऐसे सप्ताहों में क्या होता है यह किसी को बताने की जरूरत नहीं है लेकिन मुख्यमंत्री की भावनाओं को ध्यान में रखते हुए अगर डीएफओ पिछले दिनों जो पेड़ पौधे लगाए गए उनकी सुरक्षा के लिए अभियान चलाती तो जायज था। या सरकार और माननीय न्यायालय के निर्देशों के तहत खूंखार जानवरों से नागरिकों को बचाने केा प्रयास करतीं और इसके लिए कोई सप्ताह मनाती तो अच्छा होता मगर ऐसा ना कर माले मुफत दिल ए बेरहम की कहावत को चरितार्थ करते हुए जो मनोरंजन का यह आयोजन किया जा रहा है उसकी आलोचना ही की जा सकती है। ताकि वो सबकुछ सरकारी कर सकती हैं।